मन्दबुद्धि... स्पेशल चाइल्ड... विकलांग... दिव्यांग... किसी भी नाम से इन्हें पुकारें, लेकिन इन मोहक, लुभावने सम्बोधनों के पीछे के वास्तविक धरातल पर इन व्यक्तियों के जीवन की सच्चाई है शोषण, उत्पीड़न, विवशता, निरा…
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मन्दबुद्धि... स्पेशल चाइल्ड... विकलांग... दिव्यांग... किसी भी नाम से इन्हें पुकारें, लेकिन इन मोहक, लुभावने सम्बोधनों के पीछे के वास्तविक धरातल पर इन व्यक्तियों के जीवन की सच्चाई है शोषण, उत्पीड़न, विवशता, निराशा, वंचना... और हर ओर बन्द नजर आते दरवाजे... ऐसे में एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर युवती का उदासीनता की इस अभेद्य भित्ति में एक झरोखा खोलने का दुस्साहस समाज के उस वर्ग की पीड़ाओं और वेदनाओं का प्रस्तुतीकरण है, जिसके बारे में बहुत कम चिन्तन हुआ है! अनेक वास्तविक और काल्पनिक घटनाओं के माध्यम से मन्दबुद्धि व्यक्तियों के जीवन के विभिन्न पहलुओं को सामने लाती एक मर्मस्पर्शी कथा... जो प्रताप सहगल के शब्दों में समाज के इस वर्ग का ‘आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी’ चित्रण है.
अनिल गोयल पत्रकार, लेखक, रंगसमीक्षक और शोधकर्ता हैं. 22 जून 1958 को तत्कालीन पंजाब, और अब हरियाणा के अम्बाला जिले में जन्मे अनिल गोयल अपने विद्यार्थी-काल से ही हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में फीचर-लेखन करते रहे हैं. देश के प्रमुख राष्ट्रीय समाचारपत्रों और साप्ताहिक तथा मासिक पत्रिकाओं, तथा विशिष्ट त्रैमासिक रंगमंच-पत्रिकाओं में लेखन, तथा स्वतन्त्र पत्रकार के रूप में कलाओं पर साप्ताहिक स्तम्भ-लेखन किया है. वे पत्रकारिता-आन्दोलन से भी गहराई से जुड़े हुए हैं. उनकी अंग्रेजी पुस्तक ‘म्यूजियम्स एंड कलैक्शन्स ऑफ देहली’ और प्रौढ़ शिक्षा पर पुस्तिका ‘सरकारी सेवाओं का उपयोग’ आ चुकी हैं. सर्वश्रेष्ठ रंग-समीक्षक के रूप में सम्मानित. लेखक का यह प्रथम प्रकाशित उपन्यास है.
Publisher : Scriptor
Edition : 1st
Price : 299.00
Price : 199.00
ISBN : None
Number of Pages : 380
Weight : 200
Binding Type : 3
Binding Type : 1
Paper Type : Cream Paper (70 GSM)
Language : Hindi
Category : Fiction
Uploaded On : July 15, 2022
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